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Credit (साख)

Unit –II
Meaning and Significance of credit, Factors Influencing the Volume of Credit in the Country, Credit Creation by Bank, Credit Control by RBI. Inflation: Causes & Remedies.


साख का अर्थ एवं परिभाषा-: साख लैटिन भाषा के शब्द क्रेडो से लिया गया है जिसका अर्थ है "मैं तुम पर विश्वास करता हूं" परंतु अर्थशास्त्र में साख या क्रेडिट शब्द का प्रयोग उधार लेन-देन के अर्थ में लिया जाता है 'साख' को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी है जैसे-
ज़ीड के अनुसार-: साख (उधार) एक ऐसा विनिमय कार्य है, जो कुछ समय पश्चात भुगतान कर देने पर पूर्ण हो जाता है।"
हेन्स के अनुसार-: भविष्य में भुगतान कर देने की प्रतिज्ञा के आधार पर, वर्तमान में मूल्यवान वस्तुओं तथा सेवाएं प्राप्त करना साख है।
उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि साख से आशय वस्तुओं, सेवाओं अथवा धन के हस्तांतरण से है, जो इस विश्वास पर दिया जाता है कि एक निश्चित अवधि के पश्चात उसका भुगतान शर्तों के अनुकूल कर दिया जाएगा।
साख के प्रकार

1) सुरक्षा के आधार पर- सुरक्षा के आधार पर हम साख को दो भागों में बांटते हैं।(१) सुरक्षित साख, (२) असुरक्षित साख।

(१) सुरक्षित साख- सुरक्षित साख के अंतर्गत ऋण के पीछे पर्याप्त मूल्य की संपत्ति जमानत के रूप में रखी जाती है ताकि निश्चित समय पर भुगतान न होने पर जमानत के रूप में रखी हुई संपत्ति को लेकर ऋण वसूली की जा सके।
(२) असुरक्षित साख- जब ऋण दाता ऋण लेने वाले की साख के आधार पर या अन्य किसी व्यक्ति की जमानत पर रुपया उधार देता है तो उसे असुरक्षित सा कहते हैं क्योंकि इसके पीछे किसी मूल्यवान संपत्ति की जमानत नहीं होती है।

2) अवधि के आधार पर- अवधि के अनुसार साख तीन प्रकार की होती है-

(१) अल्पकालिक साख- जब व्यापारिक और कृषि कार्यों के लिए 1 वर्ष तक के लिए ऋण दिया जाता है तो उसे अल्पकालीन सा कहते हैं।
(२) मध्यकालीन साख- जब 1 वर्ष से 5 वर्ष तक अवधि के लिए ऋण दिए जाते हैं तो वह मध्यकालीन सा कहलाते हैं।
(३) दीर्घकालिक साख- दीर्घकालीन साखसे तात्पर्य उस साख से है जिसकी अवधि 5 वर्ष से 20 वर्ष तक होती है।

3) उत्पादन के आधार पर–उत्पादन के आधार पर साख को दो भागों में विभाजित किया गया है।

(१) उपभोग साख- उपभोग साख से हमारा तात्पर्य उस साख से हैं जो उपभोग सम्बन्धी आवश्यकताओं को पुरा करने के लिए ली जाती है। इन ऋणों की विशेषता यह होती है कि इनमें ऋणी को कोई आय नही होती हैं, जिससे उसे मूलधन एवं ब्याज के भुगतान की व्यवस्था अपनी आय से करनी होती हैं।
(२) उत्पादक साख- उत्पाद साख से हमारा तात्पर्य उस साख से  है जो विभिन्न पक्षों को उत्पादन कार्यों के लिए दी जाती है। ऐसे ऋणों की विशेषता यह होती है कि इनसे ऋणी को आय प्राप्त होती है और वह इस आय में से ही मूलधन एवं ब्याज के भुगतान की व्यवस्था करता है।
4) स्वरूप के आधार पर– स्वरूप की दृष्टि से साख को निम्नांकित भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(१)सार्वजनिक साख– यदि सरकार स्वयं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जनता से ऋण देती है तो इसे सार्वजनिक साख कहते हैं।
(२)व्यक्तिगत साख– यदि निजी व्यक्ति, संस्थाएं तथा कंपनियां अपनी व्यापारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऋण लेती हैं तो इसे व्यक्तिगत राख कहते हैं।
(३)बैंक साख– बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों को जो भी साख सुविधाएं दी जाती है उन्हें बैंक साख कहते हैं। जैसे - नगद साख, खाता  खाता साख आदि।
(४) व्यवसायिक साख– जब कच्चे माल को खरीदने या अन्य किसी व्यवसाय संबंधी कार्य के लिए ऋण दिए जाते हैं तो इसे व्यवसायिक साख कहते हैं। व्यवसायिक साख पर दिए गए ऋणों की अवधि 1 माह से 6 माह तक की होती है
(५)औद्योगिक साख– जब किसी उद्योग धंधे की स्थापना हेतु मशीनें जमीन आदि के लिए ऋण दिए जाते हैं तो इससे औद्योगिक साख कहते हैं। इस प्रकार के साख की अवधि प्रायः लंबी होती है।
(६) अन्य साख– ये वे ऋण होते हैं जो किसी संपत्ति की जमानत पर अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के आधार पर समय विशेष के लिए एक बैंक, व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा दिए जाते हैं। इन्हें अन्य साख में सम्मिलित करते हैं, जैसे- यात्री साख, आपातकालीन साख आदि।

साख के गुण व लाभ

  1. धातु की गिरावट से बचत – साख के प्रयोग में होने से सोना चांदी जैसी मूल्यवान धातुओं के प्रयोग में बचत होती है क्योंकि भुगतान हेतु अधिकतर साख पत्र ही प्रयोग किए जाते हैं इस प्रकार साख के प्रयोग में बहुमूल्य धातु गिरने से बचती हैं और इसका प्रयोग अन्य उत्पादक कार्यों में किया जाता है।
  2. आर्थिक संकट के समय सहायता– जब कभी सरकार आर्थिक योजनाओं को कार्यान्वित करते समय आर्थिक संकट में फंस जाती है तो वह सरकार के सहारे जनता या दूसरे देशों से ऋण लेकर काम चलाती है।
  3. व्यक्तिगत आर्थिक संकट के समय सहायक– साख की सहायता से प्रत्येक व्यक्ति सरलता पूर्वक अपनी वर्तमान आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर सकता है
  4. भुगतान करने में सुविधा– साख, साखपत्रों को जन्म देती है। यह साख पत्र विनिमय के सस्ते माध्यम है तथा एक स्थान से दूसरे स्थान को सुविधापूर्वक भेजे जा सकते हैं। अतः साख पत्रों द्वारा भुगतान बहुत सुविधा पूर्वक किए जा सकते हैं।
  5. उत्पादन में वृद्धि– साख के चलन के कारण बड़े पैमाने पर उत्पादन करना संभव हो गया है। आधुनिक युग में जो व्यक्ति स्वयं रुपए को व्यवसाय में नहीं लगा सकते हैं दूसरे से रुपया अपनी साख के आधार पर ऋण लेकर व्यापार में लगाते हैं। अतः साख के उत्पादन में वृद्धि होती है।
  6. धन के हस्तांतरण में सहायता– साख पत्रों के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान को रुपया भेजने में किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है।
  7. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि – वर्तमान युग में साख के चलन के पूर्व अंतरराष्ट्रीय व्यापार बहुत कम होता था, क्योंकि विदेशी भुगतान के लिए चांदी या सोना ही भेजना पड़ता था जिसमें बहुत अधिक व्यय होता था और जोखिम रहता था। साख के चलन में आ जाने से यातायात तथा बीमा के वह बच जाते हैं जिससे विदेशी व्यापार में वृद्धि होती है।
  8. उत्पत्ति के साधनों का अधिकतम उपयोग– साख व्यक्ति, संस्था एवं सरकार की आय में वृद्धि करके व्यापार–व्यवसाय, आदि बढ़ाने में सहायक होती है जिससे उत्पत्ति के साधनों का अच्छा और अधिकतम उपयोग संभव होता है।
  9. रोजगार में वृद्धि– यदि देश में मंदी के कारण बेरोजगारी बढ़ती है तो ऐसी स्थिति में चौक का विस्तार कर उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है जिससे रोजगार बढ़ता है एवं अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होती है
  10. वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता– साख पर उचित नियंत्रण रखकर वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता लाई जा सकती है। वस्तुओं के मूल्य में तेजी आने पर साख का प्रचार करके वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता रखी जा सकती है। साख के प्रसार से कम कुशल उत्पादक भी वस्तुओं की मात्रा बढ़ाने का प्रयास करेंगे और वस्तुओं की मात्रा बढ़ने पर इनके मूल्य में कमी आ जाएगी। इसके विपरीत व्यापारिक मंदी के समय साख की मात्रा में कमी करके वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता लाई जा सकती है। साहब की मात्रा में कमी होने पर उत्पादन कार्यक्रम होगा फलता कम वस्तुएं होंगी और वस्तुओं का मूल्य बढ़ जायेगा। इस प्रकार साख के प्रसार और संकुचन से वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता लाई जा सकती है।

साख के दोष

  1. वास्तविक आर्थिक स्थिति का छुपाव– साख के कारण सुविधा पूर्वक माल मिलने से कम अनुभवी एवं कम कुशल व्यापारी भी उत्पादन कार्य में लग जाते हैं व्यापारी में हानि होने पर भी ऐसे व्यापारी संघ द्वारा रुपया लेकर काम चलाते रहते हैं और अन्य व्यक्तियों को इस बात का पता नहीं लगने देते कि व्यवसाय में हानि हो रही है वह अपने हिसाब किताब इस प्रकार रखते हैं कि व्यवसाय की वास्तविक स्थिति आसानी से ज्ञात नहीं हो पाती।
  2. एकाधिकार को जन्म– ख्याति प्राप्त व्यक्तियों या संस्थाओं को सरलता से सात प्राप्त हो जाती है अतः बड़े बड़े औद्योगिक घराने न्यूनतम बाजार दर पर अत्यधिक साथ प्राप्त कर लेते हैं। यह उनके उद्योगों के विस्तार में मदद करती है तथा समय के साथ-साथ यादव की इकाइयां उत्पादन एवं वितरण पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लेती हैं।
  3. साख–स्फीति– अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए बैंक अधिकाधिक सा का सर्जन करने लगते हैं जिसके परिणाम स्वरूप साख-स्फीति उत्पन्न हो जाती है।
  4. सट्टेबाजी को प्रोत्साहन– सस्ते साख की उपलब्धता सट्टेबाजी की क्रियाओं को प्रोत्साहित करती हैं। व्यापारी अपने लाभ को बढ़ाने के उद्देश्य से साख प्राप्त कर उसका प्रयोग सट्टेबाजी के लिए करते हैं जिससे वस्तुओं के मूल्य बढ़ते हैं तथा सामान्य जनता को कष्ट होता है।
  5. धन का दुरुपयोग– उपभोग हेतु प्राप्त की गई साख का अधिकतर दुरुपयोग होता है भारत में ग्रामीण बैंक ऋणग्रस्तता का मुख्य कारण साहूकारों तथा महाजनों द्वारा अनुत्पादक साख प्रदान करना है। ऐसे ऋणों की वापसी कठिन होती है अतः व्यक्ति ऋणग्रस्त ही बना रहता है।
  6. धन का असमान वितरण– साख आर्थिक असमानता को बढ़ाती है साख का विनियोग करके धनी और अधिक धनी हो जाता है तथा निर्धन और अधिक निर्धन हो जाता है
  7. नैतिक पतन– अर्थव्यवस्था में साख की सहज उपलब्धता साख दुरुपयोगो को प्रोत्साहित करती है। इससे समाज में जुआ-खोरी, मादक-द्रव्यों का प्रयोग आदि, सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा मिलता है।

Factors Influencing the Volume of Credit in the Country,

अर्थव्यवस्था में साख की मात्रा को प्रभावित करने वाले तत्व

साख अनेक तत्वों जैसे- आर्थिक क्रियाओं का स्तर सरकारी नीतियों लोगों की आदतों तथा विधियों के स्वरूप आदि पर निर्भर होती है। साख की मात्रा को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं।

  1. अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति– यदि अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा अधिक है तो साख सुविधाएं भी पर्याप्त मात्रा में सरलता से उपलब्ध होती है।
  2. व्यापार चक्र की अवस्था– सभी अर्थव्यवस्थाओं में व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्थाएं दृष्टिगोचर होते हैं जैसे समृद्धि की अवस्था, तत्पश्चात अवसाद की  अवस्था एवं उसके पश्चात सरकार द्वारा अवसाद से मुक्ति पाने हेतु पुनरुत्थान की अवस्था उत्पन्न करना।
  3. मुद्रा स्थिति की अवस्था– मुद्रास्फीति की अवस्था में मुद्रा की पूर्ति तथा वस्तुओं की मांग अधिक होती है। इस स्थिति में सरकार ब्याज की दरों में वृद्धि करके साख की मात्रा को नियंत्रित करने का प्रयास करती है
  4. आर्थिक गतिविधियों का स्तर–जब देश में आर्थिक गतिविधियां अधिक तीव्र गति से होती है तब साख की मात्रा के विस्तार की आवश्यकता होती है। इस समय यदि सरकार पर्याप्त साख का विस्तार नही करती तो निजी क्षेत्र के तथा विदेशी व्यक्तियों द्वारा साख का प्रसार किया जाने लगता है।
  5. मौद्रिक तथा राजकोषीय नीति– देश के मध्य तथा वित्तीय अधिकारियों को अर्थव्यवस्था में 7 की मात्रा को नियंत्रित करने के संबंध में असीमित अधिकार होते हैं अतः वे राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए आवश्यकता अनुसार का विस्तार या संकुचन करते हैं।

Credit Creation by Bank














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