लेखांकन का जन्म एवं विकास
लेखांकन का विकास क्रमबद्ध ढंग से हुआ है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ लेखांकन का विकास भी जारी रहा। सर्वप्रथम वैदिक काल, 5000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक लेखा-जोखा रखने का वर्णन मिलता है इसके पश्चात मनु सहिंता जिसका समय 200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी में भी लेखांकन के लाभ का अवधारणा का वर्णन मिलता रहा जिसके अंतर्गत राजा को चुका है जाने वाले कर के विषय में बताया गया है दसवीं सदी में शुक्राचार्य ने अपनी पुस्तक (ग्रंथ) में राजाओं में आय के आधार पर अंतर का वर्णन किया है। इस काल में करो के विषय में लेखा-जोखा करने के विषय में बताया गया है।
राजा चंद्रगुप्त के महामंत्री कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में अर्थशास्त्र से संबंधित लेखांकन पर अत्यधिक जोड़ दिया गया है इस काल में अक्षपटल, केंद्रीय लेखा कार्यालय का ही रूप समझा गया है इसके अध्याय 'लेखाकारों के कार्यालय में खाते के रखरखाव की व्यवस्था' में लेखों व खातों को रखने तथा जांचने की विधियां का वर्णन मिलता है इस पुस्तक में गबन करने वाले कर्मचारियों को दंड देने की भी व्यवस्था थी। भारत में महाजनी बही खाता विधि को भारतीय प्रणाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसका उद्गम स्थान भारत है। हड़प्पा के अवशेष से भी पता चलता रहा है कि इस काल में व्यापार एवं उद्योगों का विकास हो चुका था।
आधुनिक लेखांकन का जन्म स्थान के इटली माना जाता है। इस देश के लुकास पेसियोली ने अपनी पुस्तक लेखा प्रणाली के सिद्धांत 1494 में पेरिस में लिखी। मि. ह्यूज ओल्ड कासिल ने 1543 में इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद किया 1795 में मिस्टर एडवर्ड ने बही खाते का प्रणाली नामक पुस्तक लिखी।
हमारे देश में आधुनिक लेखांकन प्रणाली का प्रारंभिक इंडिया कंपनी के आगमन से माना जा सकता है। इसके बाद लेखांकन के अधिकार विभिन्न राजकोषीय व्यवस्थाओं व कंपनी अधिनियमों के साथ हुआ। भारत में प्रथम कंपनी अधिनियम 1857 में बना। इसमें खातों या अकेंक्षण का कोई प्रावधान ना था। 1866 के कंपनी अधिनियम में कंपनियों के आकर्षण की व्यवस्था की गई परंतु अकेंक्षक की कोई योग्यता तय नहीं की हुई थी इसलिए उपयुक्त अकेंक्षण की नियुक्ति की जिम्मेदारी स्थानीय सरकारों को दे दी गई जिन्होंने सप्रतिबंध प्रमाण पत्र तथा प्रतिबंधरहित प्रमाण पत्र जारी किए जिनके धारक अकेंक्षण कर सकते थे। बम्बई सरकार ने गवर्नमेंट डिप्लोमा इन अकाउंटिंग शुरू हुए। 1913 के अधिनियम द्वारा ऐसे अकेंक्षण मान्य हुये।
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